सत्यदेव कुमार
हम वफ़ा के चिठियाँ पढ़ते रहे
और उन्होंने बेवफ़ाई की किताब लिख दी
हम तो रोज सवरते रहे दुल्हन की तरह
और उन्होंने किसी और के दुपट्टे पे अपने नाम लिख दी
किस से पूछूँ मैं उनके इस गुनाह की कीमत
उन्होंने तो गुनाहों की किताबें मेरे नाम लिख दी
ये है उनका हौसला जो इश्क़ में फासले बना लिए
हमने तो इस फासले में भी अपनी हाँ लिख दी।
अब हम भी किसी और चाहें
ऐसी फिदरत नहीं है हमारी
हमने तो उनके यादों को ही इश्क़ ए दास्तान लिख दी
हम वफ़ा के चिठियाँ पढ़ते रहे
और उन्होंने बेवफ़ाई की किताब लिख दी