सत्यदेव कुमार
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
जिसे खूद तक आने से रोक न पायें वो बात हो तुम
हर जगह वो जिद्दी सी धूप सा साथ हो तुम
जिसे खूद की तलब है ,वो प्यास हो तुम
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
शाम की छटकती लाली सी कायनात हो तुम
उदास भरी रातों में छटकती चाँदनी की बात हो तुम
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
शहर की हर गली की मोड़ सी एहसास हो तुम
तुम गली में मुड़कर न देखती वो उदास हो तुम
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
मंदिर में भी वरदान माँगने में आ-जाती ,वो खाश हो तुम
पुजता हूँ मन के मंदिर में वो देवी सी, वो अरदास हो तुम
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
खूद में रहकर तुझे ढूंढता रहता तुम्हें ,वो तलाश हो तुम
तुम न पाने की हो न खोने की ,बस मेरी प्यार की बात हो तुम
बेबजह मानसून सी बरसात हो तुम
जिसे खूद तक आने से रोक न पायें,वो बात हो तुम