सत्यदेव कुमार
रात की बात ही निराली है
देखा हूँ सुबह से भूखे की हाथ में थाली है
दिन भर की मजबूरी की मजदूरी में सना हाथ
रात के चावल और दाल में है
फिर न अंगड़ाई है ,न रेशमी रजाई है
सिर्फ थकावट भरी नींद है
रात की बात ही निराली है
देखा हूँ सुबह से भूखे की हाथ में थाली है
उसके लिए हर सुबह की किरण
एक नई आशा की किरण नहीं ,,आहा की किरण है
इस भूख के लिए फिर से मजदूरी में सना हुआ हाथ
चिलचिलाती दोपहर में पसीने से बुझती प्यास है
अच्छी है रात ,, इसके लिए
रात की बात निराली है
इस भूखे की हाथ में थाली है
उस के लिए पर्व -त्योहार तुगुणी आमदनी में भी
भूख तक सीमित रह जाती है
वह दाल से सिर्फ सब्जी और
कुछ और चीजों की लालच करता है
पता नहीं इस भूख में उसके जज्बात काबू में है
दुआ करूँ क्या उसके रात के लिए या शिकायत
हर हालत में भूखे की हाथ में थाली हो
रात की बात निराली है
देखा हूँ सुबह से भूखे की हाथ में थाली है