मजदूरी करने पर मजबूर हूँ । हाँ मजदूर हुँ । समाज का बोझ उठाता हूँ । धूप में भी पसीने से खुद को ठंडक पहुंचाता हूँ ये समाज भलें हीं…
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अचानक से मिली वो मुझे …. जैसे लगा वो तुम हीं हो…. ढूंढने लगा दिल की धधक से उस में तुम्हें …. वो नयन ,नख्श सब तराशा … पर तुम…
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सत्यदेव कुमार चाहत ऐसे होगी रोकर रुला दूँगा तुम्हें हँस कर हँसा दूँगा तुम्हें एक बार नाराज होने की कोशिश तो कर खूद को बिछाकर तेरे कदमों में …मना लूँगा…
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सत्यदेव कुमार इस तेज हवा के झोंके में चिंगारी जला गया कोई इश्क़ हो गया गाँव को शहर से ये बता गया कोई चूम लिया वो इश्क़ के आँधियों को..…
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सत्यदेव कुमार तुझ से इश्क़ करके खूद को गवा बैठा, इश्क़ तो सिर्फ तुम से हुई .. ,पर तेरे पूरे शहर से दिल लगा
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